दोस्तों हम हर साल कई त्योहार मनाते हैं, पर कई बार हम इन त्योहारों के पीछे की कहानियों को नहीं जानती। ये नहीं जानते की इनकी शुरुआत कहाँ से हुई थी।Holi ki purn katha- होली कि पौराणिक कथाएं 2024
दोस्तों Holi ki purn katha- होली कि पौराणिक कथाएं अभी होली के त्योहार का सीज़न है और आज मैं आपको इसीलिए होली त्योहार के पीछे की कहानी बताऊँगा। इस त्यौहार को ये नाम मिला होलिका से हिरण्यकश्यप शैतानो का राजा हुआ करता था और उसे लम्बी तपस्या के बाद ब्रह्मा से वरदान मिला हुआ था।Holi ki purn katha- होली कि पौराणिक कथाएं 2024
जिससे उसको ना तो दिन में मारा जा सकता था, ना रात में ना घर के अंदर मारा जा सकता था, ना घर के बाहर, ना धरती पर और ना ही आसमान में, ना अस्त्र से, ना शस्त्र से, उसको मिला ये वरदान उसके सर पर हावी हो गया। उसके बाद वो धरती और दूसरे युगों पर अटैक्स करने लगा। वो जहाँ जाता था, सबसे कहता कि वो भगवानो की पूजा करना छोड़ दे और उसी को मानना शुरू कर दे।
ऐसा बहुत समय तक चलता रहा। फिर उसको एक बेटा हुआ जिसका नाम रखा गया प्रहलाद। प्रहलाद शुरुआत से ही विष्णु को मानती थी और उन्हीं की पूजा भी करते थे।Holi ki purn katha- होली कि पौराणिक कथाएं 2024
जब बाहर के लोग हिरण्ये कश्यप की पूजा करते और उसका खुद का बेटा ही उसकी पूजा ना करता तो इस बात से वो बहुत क्रोधित हो गया। उसने अपने बेटे को इसी के लिए धमकाना शुरू कर दिया पर वो नहीं माना। उसने अपने ही बेटे को मारने के लिए भी कई नीतियां अपनाई पर कोई काम ना करी।
यहाँ तक कि जब उसने अपने बेटे को जहरीले सांपों के साथ छोड़ दिया तब भी उसको कुछ नहीं हुआ। इतनी मुश्किलों और रोका टोकी के बावजूद भी प्रहलाद भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। आखिर में हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे को खत्म करने के लिए एक और नीती अपनाई। उसने अपनी राक्षसी बहन होलिका को कहा कि वो प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ जाए। होलिका ने एक चादर ओड़ ली ताकि वो आग से बच जाए और प्रह्लाद जल जाए। परप्रहलाद के साथ विष्णु का साथ था। कुदरत की करनी तो देखो। वो चादर उड़कर होलिका से प्रहलाद पर आ गई और इसी वजह से होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद बच गया और इसी के बाद विष्णु ने आकर दिन और रात के बीच शाम के समय में हिरण्यकश्यप का भी अंत कर दिया। इसी के बाद से हर साल लोग इसी दिन होली दहन करके होली मनाने लगे।
जाने इस त्योहार से जुड़ी कथा प्राचीन काल में अत्याचारी राक्षस राज़ हिरण कश्यप ने तपस्या करके ब्रह्मा से वरदान पा लिया।Holi ki purn katha- होली कि पौराणिक कथाएं 2024
की संसार?का कोई भी जीव जंतु, देवी, देवता, राक्षस या मनुष्य उसे ना मार सके, ना ही वह रात में मरे ना दिन में, ना पृथ्वी पर, ना आकाश में।
ना घर में ना बाहर यहाँ तक की कोई शस्त्र भी उसे ना मार पाए। ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा। हिरण कश्यप के यहाँ प्रहलाद जैसा परमात्मा में अटूट विश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ। प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भगत था और उस पर भगवान विष्णु की कृपया दृष्टि थीरण कश्यप ने प्रहलाद को आदेश दिया कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति ना करें।
प्रहलाद के ना मानने पर हिरण कश्यप उसे जान से मारने पर उतारू हो गया। उसने प्रह्लाद को मारने में अनेक उपाय किए, लेकिन वह प्रभु कृपा से बचता रहा। हिरण कश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था। उसको वरदान में ऐसी चादर मिली हुई थी जो आग में नहीं जलती थी। हिरण कश्यप ने अपनी बहन बोलिका की सहायता से प्रह्लाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई।
होलिका बालक प्रहलाद को गोद में उठा जलाकर मारने के उद्देश्य से वरदान वाली चादर ओड़ धू धू करती आग में जा बैठी प्रभु कृपया सेव है चादर वायु के वेग से उठकर बालक प्रह्लाद पर जा पड़ी और चादर न्याय होने पर होलिका जलकर वही भस्म हो गई। इस प्रकार प्रह्लाद को मारने के प्रयास में होलिका की मृत्यु हो गई, तभी से होली का त्यौहार
साइंटिस्ट का कहना है कि हमें अपने पूर्वजों का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टि से बेहद उचित समय पर होली का त्यौहार मनाने की शुरुआत की, लेकिन होली के त्यौहार की मस्ती इतनी अधिक होती है कि लोग इसके वैज्ञानिक कारणों से अनजान रहते
जानकर हैरानी होगी कि होली का त्योहार साल में ऐसे समय पर आता है जब मौसम में बदलाव के कारण लोग उन्हींदे और आलसी से होते हैं।
ठंडे मौसम के गर्म रुख अख्तियार करने के कारण शरीर का कुछ थकान और सुस्ती महसूस करना प्राकृतिक है। शरीर की सुस्ती को दूर भगाने के लिए ही लोग फाग के इस मौसम में ना केवल ज़ोर से गाते हैं बल्कि बोलते भी थोड़ा ज़ोर से ही है। इसके साथ ही इस मौसम में बजाया जाने वाला संगीत भी बेहद तेज़ होता है। यह सभी बातें मानवीय शरीर को नई
प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त रंग और अबीर जब शरीर पर डाला जाता है तो इसका उस पर अनोखा प्रभाव पड़ता है। एक्स्पर्ट के अनुसार होली पर शरीर पर ढाक के फूलों से तैयार किया गया रंगीन पानी विशुद्ध रूप में अबीर और गुलाल डालने से शरीर पर इसका सुकून देने वाला प्रभाव पड़ता है और यह शरीर को ताजगी प्रदान करता है।मानना है कि गुलाल या अबीर शरीर के त्वचा को उत्तेजित करते हैं और पोरों में समा जाते हैं और शरीर में आयरन मंडल को मजबूती प्रदान करने के साथ ही स्वास्थ्य को बेहतर करते हैं और उसकी सुंदरता में निखार लाते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि होली का त्यौहार मनाने का एक और वैज्ञानिक कारण है। हालांकि ये होलिका दहन के परंपरा से जुड़ा है। शरद ऋतु की समाप्ति और बसंत ऋतू के आगमन का यह काल पर्यावरण और शरीर में बैक्टीरिया की वृद्धि को बढ़ा देता है, लेकिन जब होली का जलाई जाती है तो उससे करीब 145 डिग्री फरहानिट तक तापमान पड़ता है।https:/
सकेइ साथ ही परंपरा के अनुसार जब लोग जलती होलिका के परिक्रमा करते हैं तो होलिका से निकलता ताप शरीर और आसपास के एनवायरनमेंट में मौजूद बैक्टीरिया को खत्म कर देता है और इस प्रकार से शरीर और एनवायरनमेंट को क्लीन करता है।
एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि रंग खेलने से स्वास्थ्य पर उनका पॉज़िटिव प्रभाव पड़ता है, क्योंकि रंग हमारे शरीर तथा मानसिक स्वास्थ्य पर कई।और दोस्तों, हमारे अंदर ये भी सवाल आता है कि होली पर रंगों से ही क्यों खेलते हैं और रंगों से खेलना शुरू किसने करा था?https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%80